ख्याति के मूल्यांकन की विधियां , औसत लाभ विधि , khyati mulyankan ki ausat labh vidhi
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ख्याति के मूल्यांकन की विधियां
ख्याति एक अमूर्त संपत्ति है अतः इसका सही सही मूल्यांकन संभव नहीं है ख्याति के मूल्यांकन की विधियां मुख्यता व्यवसाय के लाभ पर आधारित हैं जो निम्न है|
गुडविल goodwill क्या है? ख्याति का अर्थ एवं परिभाषा, ख्याति कितने प्रकार की होती है?
ख्याति के मूल्यांकन की आवश्यकता, ख्याति की लेखांकन विशेषताएं, ख्याति की अवधारणाएं
1 औसत लाभ विधि (एवरेज प्रॉफिट मेथड)
इसमें कुछ वर्षों के औसत लाभ केआधार पर ख्याति का मूल्यांकन किया जाता है सुविधा अनुसार इसे निम्न दो भागों में विभक्त कर स्पष्ट किया जा सकता है।
क. साधारण औसत लाभ विधि
ख. भारित औसत लाभ विधि
क. साधारण औसत लाभ विधि (simple average profit method)
इस विधि के अंतर्गत कुछ वर्षों के औसत लाभ को एक निश्चित संख्या से गुणा कर ख्याति का मूल्यांकन किया जाता है।
ख्याति = औसत वार्षिक लाभ × वर्षों की संख्या
इसमें एक टर्म आया है औसत वार्षिक लाभ हम देखते हैं औसत वार्षिक लाभ को कैसे ज्ञात किया जाता है
औसत वार्षिक लाभ की गणना (computation of average profit)
औसत लाभ की गणना गत कुछ वर्षों के लाभ के योग में से हानि की राशि घटाकर (यदि हो तो) वर्षों की संख्या से भाग देकर ज्ञात किया जाता है
औसत वार्षिक लाभ की गणना करते समय निम्न शब्दों पर ध्यान रखा जाना आवश्यक है
1. लाभ की अवधि
औसत लाभ की गणना के लिए कुछ वर्षों के लाभों को आधार मानना उचित होता है यदि अवधि व्यवसाय की प्रकृति एवं आपसी समझौते पर निर्भर करती है सामान्यतः 3,5 अथवा 7 वर्षों की अवधि इस गणना के लिए उपयुक्त मानी जा सकती है ।
2. केवल शुद्ध लाभ सम्मिलित करना सकल लाभ नहीं
औसत लाभ की गणना के लिए प्रत्येक वर्ष का शुद्ध लाभ भी सम्मिलित किया जाना चाहिए सकल लाभ नहीं। सकल लाभ होने पर व्यापार के संचालन से संबंधित व्यय,विक्रय एवं वितरण संबंधी व्यय, स्थाई संपत्तियों पर ह्रास , कर के लिए आयोजन, आदि की राशियां घटाकर प्रत्येक वर्ष के लिए पृथक पृथक शुद्ध लाभ की गणना की जानी चाहिए।
3. असाधारण बेतवा असाधारण आय का सम्मिलित ना होना
यदि किसी वर्ष के शुद्ध लाभ में असाधारण व्यय सम्मिलित हो तो उसे शुद्ध लाभ मैं जोड़ दिया जाना चाहिए इसके विपरीत असाधारण आय सम्मिलित होने पर उसे उस वर्ष के शुद्ध लाभ में से घटा दिया जाना चाहिए।
4. समायोजन
उपरोक्त अनुसार प्रत्येक वर्ष पृथक पृथक ज्ञात शुद्ध लाभ की राशि के योग करने से यदि किसी वर्ष हानि हो तो हानि की राशि घटाकर उसे कुल वर्षों की संख्या से भाग देकर औसत लाभ की गणना की जानी चाहिए तत्पश्चात समायोजन कर औसत वार्षिक लाभ की गणना की जा सकती है।
5. व्यवसाय के स्वामी या स्वामियों का पारिश्रमिक
यदि किसी व्यवसाय का प्रबंधन संचालन का कार्य व्यापार के स्वामी के द्वारा निशुल्क किया जाए तो औसत लाभ के में पारिश्रमिक की उचित राशि घटा दी जानी चाहिए। यह राशि व्यवसायि की योग्यता तथा कार्य क्षमता के आधार पर निश्चित की जानी चाहिए।
6. भावी आय की संभावना
यदि भविष्य में किसी आय की संभावना हो तो उसे औसत लाभ में सम्मिलित कर लिया जाना चाहिए
7. भावी व्यय की संभावना
यदि भविष्य में व्यवसाय में किसी व्यय की संभावना हो तो संभावित राशि औसत लाभ में से घटा दी जानी चाहिए।
8. वर्षों की संख्या
उपरोक्तानुसार ज्ञात औसत लाभ को वर्षों की संख्या से गुणा कर ख्याति की गणना की जानी चाहिए। संख्या का निर्धारण व्यवसाय की प्रकृति एवं अनुमान के आधार पर किया जाना चाहिए।
ख. भारित औसत लाभ विधि
इस विधि के अंतर्गत प्रत्येक वर्ष के शुद्ध लाभ को एक निश्चित भार से गुणा कर गुणनफल का योग अर्थात उत्पाद ज्ञात किया जाता है। तत्पश्चात उसी कुल भार से भाग देकर भारित औसत लाभ ज्ञात कर लिया जाता है भजन फल को क्रय किए गए वर्षों की संख्या से गुणा कर ख्याति की राशि ज्ञात कर ली जाती है। लाभ में प्रतिवर्ष वृद्धि होने पर साधारण औसत लाभ विधि की तुलना में यह विधि अधिक उपयुक्त मानी जा सकती है।
2 अधिलाभ विधि किसे कहते है? what is super profit method
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