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शेयर मार्केट काम कैसे करता है,शेयर मार्केट के प्रकार:

  शेयर मार्केट काम कैसे करता है ? शेयर मार्केट एक ऐसा बाजार है जहां लोग शेयर खरीदने और बेचने के लिए एक व्यापार का हिस्सा बन सकते हैं। यह वित्तीय बाजार एकत्रित धन को बढ़ावा देता है और उद्यमियों को पूंजीपति के लिए वित्तीय संसाधन प्रदान करने में मदद करता है। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम शेयर मार्केट के काम के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे और यह जानेंगे कि शेयर मार्केट में व्यापार कैसे होता है। शेयर मार्केट के प्रकार: शेयर मार्केट विभिन्न प्रकार के होते हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: प्राथमिक बाजार:   प्राथमिक बाजार में कंपनियां अपने पहले सार्वजनिक अवसरों के लिए अपने शेयर बेचती हैं। यह नई कंपनियों के लिए आवंटन का स्रोत होता है और इन्वेस्टरों को उनके शेयर खरीदने की सुविधा प्रदान करता है। सेकेंडरी बाजार:   सेकेंडरी बाजार में शेयर खरीदे और बेचे जाते हैं, जो पहले से ही प्राथमिक बाजार में आवंटित हो शेयर मार्केट में पैसे कैसे लगाएं शेयर मार्केट में पैसे लगाना एक उच्च वापसी और निवेश का माध्यम हो सकता है, लेकिन यह निवेश शोध, जागरूकता और विचारशीलता की जरूरत रखता है। यदि आप शेयर मार्केट में

भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्र, भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में बताइए, भारतीय अर्थव्यवस्था के कितने क्षेत्र हैं?, भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रकार, अर्थव्यवस्था के क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण पहलू

  भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था को क्षेत्रों के आधार पर निम्नलिखित रूप से विभाजित किया गया है जो इस प्रकार है। प्राथमिक क्षेत्र भारत की बात की जाए तो प्राथमिक क्षेत्र में भारत की चार व्यवसाय  क्षेत्र को  सम्मिलित किया गया है। 1 कृषि तथा पशुपालन 2 वन उद्योग तथा लट्ठे बनाना 3 मछली पालन 4 खनन और उत्खनन द्वितीयक क्षेत्र द्वितीय क्षेत्र में उद्योग, पंजीकृत निर्माण, गैर पंजीकृत निर्माण, निर्माण कार्य तथा बिजली, गैस और जलापूर्ति आदि को सम्मिलित किया गया है। तृतीयक क्षेत्र क्षेत्र में कुल 6 व्यवसाय को सम्मिलित किया गया है। 1 परिवहन व संचार 2 व्यापार, होटल तथा जलपान गृह 3  बैंक तथा बीमा 4 स्थावर संपदा,आवास गृहों का स्वामित्व तथा व्यावसायिक सेवाएं, 5 सार्वजनिक सेवाएं 6 अन्य सेवाएं चतुर्थक क्षेत्र चतुर्थक क्षेत्र में विदेशी क्षेत्र को सम्मिलित किया जाता है। Note - केंद्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा अपनी राष्ट्रीय आय की पहली श्रृंखला में भारतीय अर्थव्यवस्था को 13 क्षेत्रों में विभाजित किया गया था परंतु केंद्रीय सांख्यिकी संगठन ने अपनी द्वितीय श्रृंखला, जो 1966-67 में जारी की गई

नॉस्ट्रो खाता किसे कहते हैं? , वोस्ट्रो खाता किसे कहते हैं? , Nastro vastro khata

नॉस्ट्रो खाता किसे कहते हैं? विदेशों में स्थित विदेशी बैंकों के साथ विदेशी मुद्रा में भारतीय बैंकों द्वारा रखे गए खाते को नॉस्ट्रो अकाउंट कहते हैं जिसका अर्थ होता है -आपके साथ हमारे खाते (aur accounts with you)। जिस देश में या खाता खोला जाएगा, खाते की मुद्रा उसी देश की होगी सभी विदेशी विनिमय व्यवहार इसी खाते के माध्यम से होंगे वोस्ट्रो खाता किसे कहते हैं? विदेशी बैंकों द्वारा भारतीय बैंकों के साथ खोले गए रुपया खाता को वोस्ट्रो खाता कहते हैं। विनिमय नियंत्रण की दृष्टि से इस खाते को नान रेजिडेंस अकाउंट कहते हैं

समाजवादी अर्थव्यवस्था किसे कहते है , समाजवादी अर्थव्यवस्था के गुण , समाजवादी अर्थव्यवस्था की विशेषता , समाजवादी अर्थव्यवस्था वाले देश, समाजवादी अर्थव्यवस्था का अर्थ बताइए

समाजवादी अर्थव्यवस्था समाजवादी अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसमें उत्पादन की भौतिक संसाधनों पर समाज या समुदाय का स्वामित्व होता है और जिनका संचालन एवं उपयोग समाज या समुदाय के प्रतिनिधियों द्वारा सामान्य आर्थिक नियोजन या योजना के आधार पर किया जाता है इस सामाजिक नियोजित उत्पादन का लाभ समाज के सभी सदस्यों को समानता के अधिकार के साथ मिलता है समाजवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं समाजवादी अर्थव्यवस्था की निम्नलिखित विशेषताएं हो सकती हैं 1  उत्पादन की संसाधनों का सार्वजनिक स्वामित्व 2  केंद्रीय आर्थिक नियोजन 3  वर्गहीन समाज की स्थापना 4 उत्पादन का स्वरूप 5 साधनों का अनुकूलतम उपयोग 6  आय का सामान्य वितरण  7  समता एवं सामाजिक न्याय 8 समाज का हित सर्वोपरि

मिश्रित अर्थव्यवस्था क्या है , मिश्रित अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं , मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषताएं , मिश्रित अर्थव्यवस्था क्या है in hindi, मिश्रित अर्थव्यवस्था का मतलब

 मिश्रित अर्थव्यवस्था मिश्रित अर्थव्यवस्था एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है जिसके अंतर्गत समाज के सभी वर्गों के कल्याण में वृद्धि के लिए सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों के दायित्व को निश्चित किया जाता है इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में अर्थव्यवस्था का लक्ष्य शोषण के बिना आर्थिक विकास करना होता है निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्रों को इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संभव प्रयास करने को कहा जाता है मिश्रित अर्थव्यवस्था का लक्ष्य पूंजीवादी दोषों को दूर करना तथा समाजवाद के दोषों  से बचना होता है। मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषताएं 1  सार्वजनिकतथा निजी क्षेत्रों का अस्तित्व  2  उद्योगों का वर्गीकरण 3 आर्थिक नियोजन 4 बाजार प्रणाली विद्यमानता 5 सरकार की केंद्रीय भूमिका 6 सामाजिक कल्याण को प्रधानता 7 सामाजिक कल्याण के पीछे लाभ की प्रेरणा

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं? पूंजीवादी अर्थव्यवस्था क्या है पूंजीवादी किसे कहते हैं पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का अर्थ , पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की परिभाषा

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था  किसे कहते हैं?  पूंजीवादी अर्थव्यवस्था  आर्थिक प्रणाली का वह  स्वरूप पूंजीवाद कहलाता है जिसके अंतर्गत उत्पादन के साधनों का एक बड़ा भाग पूजीपतियों कि उद्योगों में भी नियोजित होता है पूजीपतियों का उद्योग वह उद्योग होता है जिसमें उत्पत्ति के भौतिक साधनों का स्वामित्व निजी व्यक्तियों के हाथ में होता है वे अपनी इच्छा अनुसार इन साधनों को ऐसी वस्तुओं एवं सेवाओं के पादन में लगाते हैं जिन से उनको अधिकतम लाभ प्राप्त होने की संभावना रहती है पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं क्या होती हैं? पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के निम्नलिखित विशेषताएं हो सकती हैं 1 उत्पत्ति के साधनों पर निजी स्वामित्व 2 अधिकतम लाभ प्राप्त करने का लक्ष्य 3 उपभोक्ता संप्रभु होता है 4  उद्यमों के चुनाव  की स्वतंत्रता 5 निजी उद्यमों का महत्व 6 बचत तथा विनियोग की स्वतंत्रता 7 केंद्रीय आर्थिक नियोजन का अभाव

मांग की लोच , मांग की लोच क्या है? मांग की लोच का महत्व , mang ki loch kise kahate hain , mang ki loch ka niyam, mang ki loch ki paribhasha

 मांग की लोच की भूमिका कीमत और मांगी गई मात्रा के बीच संबंध को बतलाती है। यह इस बात का संकेत देती है कि   विभिन्न कीमतों पर एक वस्तु की कितनी मात्रा मांगी जाएगी यह बतला देना  आवश्यक है। की अर्थशास्त्री मांग और मांगी गई मात्रा के अंतर को बतलाते हैं। मांग वे मात्राएं हैं जो क्रेता समय की एक निश्चित अवधि में विभिन्न या वैकल्पिक कीमतों पर खरीदने की इच्छुक तथा योग्य होते हैं इसकी विपरीत मांगी गई मात्रा एक विशेष राशि है जो क्रेता  एक निश्चित कीमत पर खरीदने के इच्छुक तथा योग्य होते हैं ।     उदाहरण के लिए - ₹1 प्रति आइसक्रीम पर उपभोक्ता द्वारा चार आइसक्रीम को खरीदने की इच्छा तथा योग्यता मांगी गई मात्रा का उदाहरण है जबकि उपभोक्ता द्वारा एक रुपए पर चार आइसक्रीम ₹2 पर इन आइसक्रीम ₹3 पर दो आइसक्रीम खरीदने की योग्यता तथा इच्छा मांग का उदाहरण है मांग का नियम मांग का नियम यह बतलाता है कि अन्य बातें समान रहने पर किसी वस्तु की कीमत कम होने पर उसकी मांग बढ़ जाती है। अर्थात किसी वस्तु की कीमत तथा मांगी गई मात्रा के विपरीत संबंध है परंतु यह संबंध आनुपातिक नहीं है अर्थात यह आवश्यक नहीं है कि वस्तु  की कीम

types of demand functions, types of demand in hindi, types of demand class 12 मांग के प्रकार,मांग के प्रकार कितने होते हैं, मांग के प्रकार लिखिए, मांग प्रकार के बारे में विस्तार से बताइए,

 मांग के प्रकार कितने होते हैं  मांग के मुख्य प्रकार निम्नलिखित है 1 कीमत मांग price demand    मांग के  प्रकार  मे से एक कीमत मांग को हम ऐसे समझ सकते हैं।  कीमत मांग किसी वस्तु की कीमत तथा मांग में संबंध प्रकट करती है। इससे  ज्ञात होता है कि किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर उस वस्तु की कितनी मात्रा की मांग की जाएगी। कीमत मांग को एक समीकरण द्वारा भी प्रकट किया जा सकता है इस समीकरण को कीमत मांग फलन कहा जाता है।                               Dà=f(Pà) इसे पढ़ा जाएगा वस्तु A की मांग (Dà), वस्तु A की कीमत (Pà) का पालन (f) है । अर्थात वस्तु  A की मांग, वास्तु A की कीमत पर निर्भर करती है। कीमत मांग का अनुमान लगाते समय यह मान लिया जाता है कि उपभोक्ता की आय, अस्थाना पत्र वस्तुओं की कीमतें, उपभोक्ता की रुचि अर्थात,अन्य बातें सामान्य रहेगी । हमारा सबका साधारणतया यह अनुभव है कि  अन्य बाते सामान रहने पर जब किसी वस्तु की कीमत बढ़ती है तो मांग कम हो जाती है अतएव कीमत मांग फलन से ज्ञात   होता है कि मांग कीमत का विपरीत फलन है । इसका अर्थ यह हुआ कि कीमत की कम होने पर मांग बढ़ती है तथा कीमत के बढ़ने पर म

मांग का अर्थ , Theory of demand , मांग की परिभाषाएं , definition of demand theory of demand and supply, theory of demand class 12, theory of demand bcom 1st year, theory of demand and supply in economics, theory of demand class 11

          मांग का अर्थ Theory of demand अर्थशास्त्र में मांग का अर्थ प्रयोग विशेष अर्थों में किया जाता है।आम बोलचाल की भाषा में अच्छा आवश्यकता तथा मांग शब्दों का प्रयोग एक ही अर्थ में किया जाता है परंतु अर्थशास्त्र में इन शब्दों के विभिन्न अर्थ होते हैं आपकी कार लेने की इच्छा है परंतु आपके पास पर्याप्त धन नहीं है तो आप यही इच्छा आर्थिक दृष्टि से केवल इच्छा ही है। मांग नहीं  परंतु यह पर्याप्त धन होते हुए भी आप इनको कार पर खर्च करना नहीं चाहते तो यह केवल आवश्यकता ही कहलाये गी मांग नहीं यह इच्छा उसी स्थिति में मांग का रूप धारण करेंगी जिस स्थिति में (अर्थात एक निश्चित समय और निश्चित कीमत पर) आप कार खरीदने के लिए तैयार हैं इस बात का स्पष्टीकरण आवश्यक है कि एक निश्चित निश्चित समय के संबंध में ही मांग का उल्लेख किया जाना चाहिए। अतः "यदि मांग को प्रभावित करने वाले अन्य तत्व समान रहे तो मांग किसी पदार्थ की वह मात्रा है जिसे एक उपभोक्ता समय की एक निश्चित अवधि में एक निश्चित कीमत पर खरीदने के लिए इच्छुक है या योग्य है"। मांग की परिभाषाएं definition of demand 1 प्रोफेसर वीरा अंस्टे के अ

भारतीय बहीखाता प्रणाली में सुधार के लिए सुझाव

 भारतीय बहीखाता प्रणाली में सुधार के लिए सुझाव वैसे तो भारतीय बहीखाता प्रणाली अंग्रेजी की दोहरा लेखा प्रणाली से काफी सरल एवं सुविधाजनक है लेकिन फिर भी इसे और अधिक उपयोगी बनाने के लिए उपरोक्त कमियों को दूर करना आवश्यक है जो इस संबंध में निम्न सुधार किए जाने चाहिए 1 सुविधाजनक बहीया  लंबी-लंबी बहिंयो कि मैं स्थान पर जिल्ददार सुविधाजनक रजिस्टरओं का भी प्रयोग होना चाहिए जिसमें पृष्ठ संख्या भी मुद्रित होनी चाहिए जिससे जालसाजी की संभावना नहीं रहेगी 2 उधार लेन दिनों का अलग लेखा  उधार लेने देने का लेखा रोकड़ बही में नहीं होना चाहिए खून के लिए अलग बहिया होनी चाहिए जिससे उधार पर क्रय विक्रय की झांसी की शीघ्रता से ज्ञात की जा सके। 3 रोकड़ बही में सुधार  रोकड़ बही में रोकड़ व्यवहारों के साथ-साथ छूट तथा बैंक संबंधी लेन देन का भी लेखा होना चाहिए छोटी-छोटी दैनिक खर्चों के लिए अलग से  रोकड़ बही रखी जानी चाहिए। कच्ची पक्की रोकड़ बही के स्थान पर केवल एक रोकड़ बही का प्रयोग होना चाहिए। 4 व्यापार खाता तथा लाभ हानि खाता इस प्रणाली में भी एक सकल लाभ तथा सकल हानि ज्ञात करने के लिए व्यापार खाता तथा शुद्ध लाभ ह

भारतीय बहीखाता प्रणाली के गुण एवं दोष , bhartiya bahikhata pranali , भारतीय बहीखाता प्रणाली , भारतीय बहीखाता प्रणाली के दोष

                  भारतीय बहीखाता प्रणाली भारतीय बहीखाता प्रणाली के गुण bhartiya bahikhata pranali भारतीय बहीखाता प्रणाली में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं 1 मितव्ययी भारतीय बहीखाता प्रणाली (bhartiya bahikhata pranali) के अंतर्गत उपयोग की जाने वाली बहिय  सस्ती होती हैं। यह विभिन्न आकार प्रकार  की भी मिलती है ।व्यापारी अपनी व्यापार की आवश्यकता अनुसार उन्हें खरीद सकता है। 2 टिकाऊ बाहिया बाहीयो  का कागज काफी मजबूत और कबर काफी मजबूत होता है।इस कारण इन बहीयों को कई वर्षों तक आवश्यकतानुसार संभाल कर रख सकते हैं। 3 सलो ( कॉलम) का उपयोग खाने के लिए  बहायो में पहले से ही सल  पड़े रहते हैं जो खनो का कार्य करते हैं अलग से रेखाएं नहीं खींचनी पड़ती है। 4 सरलता  यह प्रणाली अत्यंत सरल होती है मंदबुद्धि वाला व्यक्ति कुछ समय में ही से सीख कर आसानी से हिसाब किताब रख सकता है। 5 देसी भाषा का प्रयोग इस प्रणाली को लिखने के लिए किसी भी भारतीय भाषा या स्थानीय भाषा का प्रयोग किया जा सकता है। 6 लोचता  इस प्रणाली में पर्याप्त लोचता पाई जाती है। व्यापारी व्यापार की आवश्यकता के हिसाब से बहीयों की संख्या कम या ज्यादा क

भारतीय बहीखाता प्रणाली की विशेषताएं और लोकप्रियता के कारण , भारतीय बहीखाता प्रणाली से आशय

  भारतीय बहीखाता प्रणाली से आशय  भारतीय बहीखाता प्रणाली की विशेषताएं और लोकप्रियता के कारण भारतीय बहीखाता प्रणाली आज भी लोकप्रिय हैं। इसकी विशेषता है इसका कारण है जो कि निम्नलिखित है। 1 सरलता  यह पद्धति बहुत ही सरल है। कम पढ़ा लिखा व्यक्ति भी इसे कुछ ही समय में इसको सीख सकता है।यहां तक कि सामान्य पढ़ा लिखा व्यक्ति भी इस पद्धति को सीकर हिसाब किताब आसानी से रख सकता है। 2 मितव्य यह पद्धति अत्यंत सस्ती है। एक तो बाहियो की संख्या कम होती है। दूसरा रजिस्टर ओं की तुलना में बढ़िया सस्ती पड़ती हैं तीसरा बहीयो को लिखने वाला भी कम वेतन में मिल जाता है। 3 देशी भाषा का प्रयोग भारतीय प्रणाली में लेखा  किसी भी भारतीय भाषा में किया जा सकता है । हिंदी, उर्दू, गुजराती, मराठी,गुरुमुखी ,  सिंधी, बांग्ला आदि। सभी भाषाओं में इसे लिखा जा सकता है उत्तर भारत में अधिकांश व्यापारी इसे मुड़िया भाषा में लिखते है। 4 गोपनीयता देश एवं स्थानीय भाषा में लिखे जाने के कारण बाहरी व्यक्ति इन खातों को आसानी से समझ नहीं सकता इसलिए इसे लिए बहीखाते  गोपनीय बने रहते हैं। 5 वैज्ञानिकता  भारतीय बहीखाता  पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है।

भारतीय बहीखाता प्रणाली , भारतीय बहीखाता प्रणाली क्या है, भारतीय बहिखाता प्रणाली की परिभाषा

 भारतीय बहीखाता प्रणाली से आशय हमारे देश में अति प्राचीन काल से भारतीय बहीखाता प्रणाली का प्रचलन रहा है। आज यूरोप के जो देश  विकसित कहे जाते हैं।, एक समय में जंगली अवस्था में थे और तब भारत अपनी व्यापार और उद्योग धंधों के लिए विश्वविख्यात था । उस समय हमारे देश में हिसाब किताब रखने की जिस विधि का प्रयोग किया जाता था वह भारतीय बहीखाता प्रणाली ही थी। अथर्ववेद, मनुस्मृति, और कौटिल्य के अर्थशास्त्र में इस बात के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं की अति प्राचीन काल से हमारे देश में यह प्रणाली सफलतापूर्वक कार्यशील थी और आज भी है। यह पूर्णतया एक सुदृढ़ एवं उन्नत प्रणाली है। यह प्रणाली पूर्ण एवं वैज्ञानिक है।विद्वानों का मत है कि यह प्रणाली कई मायने में द्वीप्रविष्टि प्रणाली से भी श्रेष्ठ है।इसमें आज भी ऐसे गुण विद्यमान हैं जो अंग्रेजी प्रणाली  से अधिक वैज्ञानिक और भारतीय परिस्थितियों के हैं । लेकिन आज की परिस्थिति में इस प्रणाली का प्रयोग बहुत ही कम किया जा रहा है आज भी बड़े-बड़े व्यापारी लिमिटेड कंपनियां इस  प्रणाली का प्रयोग कर रहे हैं। छोटी-छोटी व्यापारी तो इस प्रणाली का ही प्रयोग करते हैं। भारत म

ख्याति मूल्याङ्कन की विधिया , ख्याति मूल्यांकन की क्रय प्रतिफल विधि , ख्याति मूल्याङ्कन की पारस्परिक सहमति विधि , ख्याति मूल्याङ्कन की सकल प्राप्ति विधि

                                                        ख्याति मूल्याङ्कन की विधिया  {ख्याति के बारे मे जानने के लिए यहाँ क्लिक करे}  गुडविल goodwill क्या है? ख्याति का अर्थ एवं परिभाषा, ख्याति कितने प्रकार की होती है? ख्याति के मूल्यांकन की आवश्यकता, ख्याति की लेखांकन विशेषताएं, ख्याति की अवधारणाएं  5 ख्याति मूल्यांकन की क्रय  प्रतिफल विधि purchase consideration method इस विधि के अंतर्गत ख्याति की गणना क्रय मूल्य की राशि में से शुद्ध संपत्तियों का मूल्य घटाकर की जाती है। शुद्ध संपत्तियों के मूल्य की गणना क्रय की गई वार्षिक संपत्तियों (अवास्तविक संपत्तियों जैसे- प्रारंभिक व्यय,अंशो एवं ऋणपत्रो पर  कमीशन आदि को छोड़ कर ) की क्रय मूल्य (बाजार मूल्य या वसूली मूल्य) मैं से स्वीकार किए गए दायित्वों की राशि घटाकर की जा सकती है। सूत्र:      शुद्ध संपत्तियां=वास्तविक संपत्तियां-स्वीकार किए गए दायित्व ख्याति =क्रय मूल्य -शुद्ध संपत्तियां नोट- यदि क्रय मूल्य में से  शुद्ध संपत्तियों का मूल्य अधिक हो तो ख्याति शून्य होगी। 6 ख्याति मूल्याङ्कन की पारस्परिक सहमति विधि (Mutual agreement method) इस

ख्याति मूल्याङ्कन की विधिया , ख्याति का मूल्यांकन पूंजीकरण विधि कैसे करते है ?

                           ख्याति मूल्याङ्कन की विधिया  {ख्याति के बारे मे जानने के लिए यहाँ क्लिक करे}  गुडविल goodwill क्या है? ख्याति का अर्थ एवं परिभाषा, ख्याति कितने प्रकार की होती है? ख्याति के मूल्यांकन की आवश्यकता, ख्याति की लेखांकन विशेषताएं, ख्याति की अवधारणाएं 3 ख्याति का  मूल्यांकन  पूंजीकरण विधि  कैसे करते है ? इस विधि के अंतर्गत लाभों का पूंजीकरण मूल्य ज्ञात कर ख्याति   गणना की जाती है पंजीकृत मूल्य से आशय वास्तविक लाभ की राशि अर्जित करने के लिए व्यावसाय में आवश्यक पूंजी की राशि से है। 1 औसत लाभ के पूंजीकरण द्वारा 2 अधिलाभ के पूंजीकरण द्वारा 1 औसत लाभ के पूंजीकरण द्वारा  इस विधि के अंतर्गत सर्वप्रथम औसत लाभ की गणना औसत लाभ की विधि की भांति ही की जाती है तत्पश्चात उक्त लाभ का सामान्य दर के आधार पर पूंजीकृत मूल्यों के आधार पर ज्ञात किया जाता है  यह मूल्य सामान नियोजित पूजी कहलाती हैं। सामान्य नियोजित पूजी  = (औसत लाभ  × 100)/ सामान्य दर उपरोक्ततानुसार ज्ञात सामान्य पूजी में से औसत नियोजित पूंजी की राशि घटाने पर प्राप्त अधिक की राशि ख्याति कहलाती है। ख्याति = सामान्य नियोजि

ख्याति मूल्याङ्कन की विधिया ,अधिलाभ विधि किसे कहते है? , adhilabh ka mulyankan kaise karte hai

                     ख्याति मूल्याङ्कन की विधिया      2  अधिलाभ  विधि किसे कहते है? what is super profit method हेलो स्टूडेंट तो आप लोग कैसे हैं आशा करते हैं अच्छे ही होंगे तो आज हम लोग पढ़ने वाले हैं अधिलाभ विधि  सुपर प्रॉफिट मेथड चलिए शुरू करते हैं अगर आपको ख्याति के बारे में जानना है तो इस लिंक पर क्लिक करें जो ब्लू कलर के हैं    गुडविल goodwill क्या है? ख्याति का अर्थ एवं परिभाषा, ख्याति कितने प्रकार की होती है? ख्याति के मूल्यांकन की आवश्यकता, ख्याति की लेखांकन विशेषताएं, ख्याति की अवधारणाएं अधिलाभ विधि इस विधि के अंतर्गत अधिलाभ की राशि का वर्षों की संख्या से गुणा कर ख्यात की गणना निम्नानुसार की जाती है। ख्याति=अधिलाभ× वर्षों की संख्या Goodwill=  super profit × number of years अधिलाभ (super profit)   सामान्यतः अपेक्षित लाभ की तुलना में कमाया गया अधिक लाभ अधिलाभ कहलाता है। इसकी गणना निम्न प्रकार की जा सकती है अधिलाभ =वास्तविक औसत लाभ-सामान्य लाभ Super profit = actual average profit - normal profit इसमें वास्तविक औसत लाभ की गणना औसत लाभ विधि की भांति ही की जाती है तथा सामान्य लाभ क

ख्याति के मूल्यांकन की विधियां , औसत लाभ विधि , khyati mulyankan ki ausat labh vidhi

  ख्याति के मूल्यांकन की विधियां ख्याति एक अमूर्त संपत्ति है अतः इसका सही सही मूल्यांकन संभव नहीं है ख्याति के मूल्यांकन की विधियां मुख्यता व्यवसाय के लाभ पर आधारित हैं जो निम्न है| गुडविल goodwill क्या है? ख्याति का अर्थ एवं परिभाषा, ख्याति कितने प्रकार की होती है? ख्याति के मूल्यांकन की आवश्यकता, ख्याति की लेखांकन विशेषताएं, ख्याति की अवधारणाएं 1 औसत लाभ विधि (एवरेज प्रॉफिट मेथड) इसमें कुछ वर्षों के औसत लाभ केआधार पर ख्याति का मूल्यांकन किया जाता है सुविधा अनुसार इसे निम्न दो भागों में विभक्त कर स्पष्ट किया जा सकता है। क.  साधारण औसत लाभ विधि  ख.  भारित औसत लाभ विधि क. साधारण औसत लाभ विधि (simple average profit method) इस विधि के अंतर्गत कुछ वर्षों के औसत लाभ को एक निश्चित संख्या से गुणा कर ख्याति का मूल्यांकन किया जाता है।                                     ख्याति = औसत वार्षिक लाभ × वर्षों की संख्या इसमें एक टर्म आया है औसत वार्षिक लाभ हम देखते हैं औसत वार्षिक लाभ को कैसे ज्ञात किया जाता है            औसत वार्षिक लाभ की गणना (computation of average profit) औसत लाभ की गणना गत कुछ

आयगत एवं पूंजीगत व्यय क्या है, पूंजीगत व्यय की विशेषताएं, अायगत व्यय क्या है what is revenue expenditure

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आयगत एवं पूंजीगत व्यय क्या होता है । पूंजी का आशय अर्थशास्त्र में पूंजी का आशय से धन के उस भाग से है जो अतिरिक्त धन के उत्पादन के लिए प्रयोग में लाया जाता है लेखांकन के वार्षिक चिट्ठी के आधार पर संपत्तियों का दायित्व पर आधिक्य पूंजी माना जाता है। आय का आशय एक निर्धारित अवधि की आयगत प्राप्तियां उस अवधि के आयगत व्यय से  जितनी अधिक होती है वही आधिक्य उस अवधि की आय मानी जाती है।इसी आधिक्य को शुद्ध लाभ भी कहा जाता है।गैर व्यापारिक संस्थाओं मैं इसे आय का व्यय पर आधिक्य माना जाता है।  1 पूंजीगत व्यय क्या है what is capital expenditure पूंजीगत व्यय  आशय ऐसे  व्ययाे से है जो स्थाई संपत्तियों को को खरीदने, उसने कोई भी वृद्धि करने तथा स्थाई संपत्तियों की कार्य क्षमता में वृद्धि करने के संबंध में किए जाते हैं। इस वर्णन के अनुसार किसी भी व्यय को पूंजीगत व्यय होने के लिए निम्नलिखित शर्तों में से किसी एक या अधिक शर्तों को पूरा करने वाला होना चाहिए। 1 व्यवसाय के लिए किसी संपत्ति को क्रय करने , निर्माण करने या प्राप्त करने, या प्राप्त उसे प्रयोग में लाने हेतु व्यय किया गया हो 2 व्यवसाय की लाभार्जन  शक

वित्तीय लेखांकन एवं लागत लेखांकन में अंतर , लागत लेखांकन एवं वित्तीय लेखांकन में समानताएं

 वित्तीय लेखांकन एवं लागत लेखांकन में अंतर  1 लेखों की अनिवार्यता विद्यालय के किसी भी व्यवसाय को प्रथम के लिए अनिवार्य होते हैं जब की लागत लेखे किसी भी व्यावसायिक उपक्रम के  लिए अनिवार्य नही होते।  2 कार्य कुशलता पर प्रभाव  वित्तीय लेखों का व्यावसायिक उपक्रम की कार्यकुशलता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता जब की लागत लिखें व्यावसायिक उपक्रम की कार्य कुशलता में वृद्धि करने में अधिक सहायक होतो है। 3 ब्ययो का वर्गीकरण  वित्तीय लिखे में व्यय का विस्तृत वर्गीकरण नहीं किया जाता है। अर्थात   व्ययो रूप में लेखा किया जाता है  जबकी लागत लेखों के अंतर्गत व्ययो का वर्गीकरण किया जाता है जैसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष व्यय।  अप्रत्यक्ष वययो भी कारखाना ऊपरीव्यय, कार्यालय ऊपरीव्यय और विक्रय एवं विवरण व्ययो मैं वर्गीकरण किया जाता है। 4 प्रति इकाई लागत क्या करना वित्तीय लेखों की सहायता से उत्पादन की प्रती ईकाई लागत आसानी से ज्ञात नहीं की जा सकती । जब की लागत लेखों की सहायता से उत्पादन की प्रति इकाई लागत  आसानी से ज्ञात की जा सकती हैं। 5 अनुमानित व्यय का लेखा लागत लेखों की सहायता से निर्ख (टेंडरt) का मूल्य ज्ञात नह

ख्याति के मूल्यांकन की आवश्यकता, ख्याति की लेखांकन विशेषताएं, ख्याति की अवधारणाएं , गुडविल goodwill क्या है? ख्याति का अर्थ एवं परिभाषा, ख्याति कितने प्रकार की होती है?

 ख्याति की अवधारणाएं concept of goodwill न्यायाधीशों अर्थशास्त्रियों एवं लेखापाल को का ख्याति के संबंध में पृथक पृथक दृष्टिकोण रहा है जो निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है। देखने के लिए क्लिक करे  ख्याति किसे कहते है? ,गुडविल goodwill क्या है? ख्याति का अर्थ एवं परिभाषा, ख्याति कितने प्रकार की होती है? ख्याति के मूल्यांकन की विधियां 1 कानूनी या वैधानिक अवधारणा legal concept ख्याति के संबंध में न्यायाधीशों का दृष्टिकोण प्राय ग्राहकों तक ही सीमित रहा है उन्होंने ख्याति को ग्राहक के पुराने स्थान पर लौट आने की संभावना ही माना है। 2 आर्थिक अवधारणा Economic concept  ख्याति के संबंध में अर्थशास्त्रियों का यह दृष्टिकोण है कि व्यवसाय में ख्याति  की उत्पत्ति किसी एक संपत्ति के योगदान से ना होकर समस्त संपत्तियों के सामूहिक योगदान से होती है अतः ख्याति का रूप संगठनात्मक है। अर्थशास्त्री श्री एड़े eadey ने ख्याति को संगठन के नाम से ही संबोधित किया है। उनके मतानुसार ख्याति अनेक अलिखित संपत्तियों का मिश्रण है।किसी भी चालू व्यवसाय के सरकार से संबंधों के कारण गैर व्यावसायिक संस्थाओं से संबंधों के

प्रबंधकीय लेखांकन की आवश्यकता, प्रबंधकीय लेखा विधि क्या है? प्रबंधकीय लेखांकन से क्या आशय है? प्रबंधकीय लेखांकन का क्षेत्र , प्रबंधकीय लेखांकन के कार्य , Management Accounting

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   प्रबंधकीय लेखांकन  किसे कहते है  what is  Management Accounting प्रबंधकीय लेखांकन की भूमिका लेखा विधि में इतनी महत्वपूर्ण एवं व्यापक है कि इसके लिए लेखा विधि की एक नई शाखा का विस्तार किया गया जिससे प्रबंधकीय लेखा विधि prabandhkiy lekha vidhi   कहते हैं। यह वित्तीय एवं लागत लेखा  विधियों का  व्यवहारिक पहलू है। प्रबंधकीय लिखा किसी शब्द का प्रयोग सबसे पहले आंग्ला अमेरिका उत्पादकता परिषद के तत्वाधान में 1950 में अमेरिका के भ्रमण पर आए हुए लेखापलो कि ब्रिटिश टीम ने किया। तब से यह शब्द अमेरिका तथा अन्य देशों में काफी प्रचलित हो गया । इसी वित्तीय लेखा विधि की अगली सीढ़ी कहा जा सकता है क्योंकि जहां पर वित्तीय लेखा विधि का कार्यक्षेत्र समाप्त होता है वहीं से प्रबंधकीय लेखा विधि प्रारंभ होती । इस प्रकार इसी विद्यालय का विधि का पूरक कहा जा सकता है। प्रबंधकीय दिन का विधि के अंतर्गत देखा सूचनाओं का उद्देश्य अनुसार विश्लेषण एवं व्याख्या की जाती है।और इन्हीं प्रबंध के समुख प्रस्तुत किया जाता है। जिससे उसे अपनी नीति निर्धारण, नियोजन निर्णयन तथा नियंत्रण के कार्यो के निष्पादन में सरलता रहे इसलिए इसे

लागत लेखांकन की परिभाषा cost accounting,लागत लेखांकन क्या है,लागत लेखांकन के उद्देश्य,लागत लेखांकन की सीमाएं

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      2 लागत लेखांकन  cost accounting लागत लेखांकन के अंतर्गत उत्पादन से लेकर बिक्री एवं वितरण के सभी व्ययो का लेखांकन ( recording) वर्गीकरण,(classification)  एवं अनुभाजन(allocation) किया जाता है जिससे कि उत्पादित वस्तुओं एवं प्रदान की जाने वाली सेवाओं के प्रति इकाई लागत और उत्पादन की कुल लागत ज्ञात की जा सके और इसके आधार पर प्रति इकाई का सही-सही विक्रय मूल्य निर्धारित किया जा सके  यदि उत्पादक अनेक वस्तुओं का उत्पादन करता है ।तू कौन सी वस्तु का उत्पादन अधिक लाभदायक है और कौन सी वस्तु का उत्पादन कम लाभदायक है या हानि प्रद है, यह लागत लेखों द्वारा आसानी से ज्ञात तो हो जाता है ऐसे जानकारी प्राप्त करके जिन वस्तुओं का उत्पादन अधिक लाभप्रद है उसका उत्पादन बढ़ाया जा सकता है । और जिन वस्तुओं का उत्पादन कम लाभदायक है या हानि प्रद है उनका उत्पादन कम अथवा बंद किया जा सकता है।  इस प्रकार लागत लेखों से व्यवसाय के लाभ में वृद्धि करने में सहायता मिलती है। इसके अतिरिक्त लागत लेखों द्वारा सामग्री, श्रम, अन्य प्रत्यक्ष व्यय, कारखाना  उपरिव्ययो, कार्यालय एवं प्रशासनात्मक ऊपरिव्ययो और बिक्री एवं वितरण उपर

वित्तीय लेखांकन किसे कहते है ,लेखांकन के प्रकार , lekhnakan ke prakar , financial accounting in hindi

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संदेश-हेलो स्टूडेंट आप लोग कैसे हैं आशा करते हैं आप अच्छे ही होंगे अगर आप वित्तीय लेखांकन की परिभाषा ही पढ़ना चाहते हैं तो पोस्ट के नीचे वित्तीय लेखांकन को बताया गया है जा कर पढ़ें लेखांकन  के प्रकार ,लेखांकन की विभिन्न स्वरूप का अध्ययन यह सर्वविदित है कि सभ्यता का विकास व्यवसाय के विकास पर निर्भर करता है जैसे-जैसे सभ्यता का विकास होता है वैसे-वैसे व्यवसाय का स्वरूप भी विकसित होता है  आज के विकासशील युग में लेखांकन का महत्व अत्यधिक बढ़ गया है अतः लेखांकन के सिद्धांत    की विभिन्न व्यवस्थित पद्धतियों का विकास हुआ है उन्हीं पद्धतियों में से एक वित्तीय लेखांकन पद्धति है|  यह पद्धतियां मुख्य रूप से वित्तीय व्यावसायिक व्यवहारों और महत्वपूर्ण सारांश बनाने विश्लेषण करने, उनकी व्याख्या और परिणामों को उन व्यक्तियों तक पहुंचाने का कार्य करती हैं जिन्हें उनके आधार पर निर्णय लेने होते हैं।  केवल इतना ही नहीं,विकासशील देशों में किए गए अध्ययन एवं शोध कार्यो ने यह सिद्ध कर दिया है कि किसी व्यापार की सफलता अथवा सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि व्यवसाय के संचालन के लिए लेखांकन तथा अभिलेख रखने की कौन स

In accounting first stage is journal The second stage is what | Can I use vyapar accounting app in a window touch screen?| Is it's okay to study accountancy Part 3 for HS 2nd year?

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 लेखांकन में पहला चरण जर्नल है दूसरा चरण क्या है लेखांकन  में   पहला चरण जर्नल होता है और दूसरा चरण हम लेजर को कहते हैं चलिए स्टूडेंट हम देखते हैं जनरल किसे कहते हैं और लेजर किसे कहते हैं   1 लेखांकन का पहला चरण जनरल जर्नल को हम रोजनामचा भी कहते हैं रोजनामचा या जर्नल प्रारंभिक लिखे की प्रधान पुस्तक है| जिसमें दोहरा लेखा प्रणाली सिद्धांत के अनुसार हर एक लेनदेन के दोनों रूपों का प्रारंभिक लेखा तिथि वार एवं क्रमानुसार किया जाता है उसे रोजनामचा अथवा जनरल कहते हैं इस बही में लेखा करने से पूर्व प्रत्येक लेनदेन से संबंधित दो खातों का पता लगाया जाता है जिसमें से एक रैली और दूसरा धनी किया जाता है रेडी एवं धनी करने के निश्चित नियम होते हैं । जिनके अनुसार जनरल या रोजनामचा मेले के किए जाते हैं|  जनरल की परिभाषा  कांटा के अनुसार " रोजनामचा याद दैनिक अभिलेख प्राथमिक प्रविष्टियों की वह पुस्तक है जिसमें स्मरण वही अथवा बेस्ट बुक की तिथि क्रम में ले नैनो को लिखा जाता है प्रविष्टियों को लिखते समय उन्हें नाम अथवा जमा के रूप में वर्गीकृत किया जाता है ताकि बाद में उनकी खाता बही में सही खतौनी करने में