शेयर मार्केट काम कैसे करता है,शेयर मार्केट के प्रकार:

  शेयर मार्केट काम कैसे करता है ? शेयर मार्केट एक ऐसा बाजार है जहां लोग शेयर खरीदने और बेचने के लिए एक व्यापार का हिस्सा बन सकते हैं। यह वित्तीय बाजार एकत्रित धन को बढ़ावा देता है और उद्यमियों को पूंजीपति के लिए वित्तीय संसाधन प्रदान करने में मदद करता है। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम शेयर मार्केट के काम के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे और यह जानेंगे कि शेयर मार्केट में व्यापार कैसे होता है। शेयर मार्केट के प्रकार: शेयर मार्केट विभिन्न प्रकार के होते हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: प्राथमिक बाजार:   प्राथमिक बाजार में कंपनियां अपने पहले सार्वजनिक अवसरों के लिए अपने शेयर बेचती हैं। यह नई कंपनियों के लिए आवंटन का स्रोत होता है और इन्वेस्टरों को उनके शेयर खरीदने की सुविधा प्रदान करता है। सेकेंडरी बाजार:   सेकेंडरी बाजार में शेयर खरीदे और बेचे जाते हैं, जो पहले से ही प्राथमिक बाजार में आवंटित हो शेयर मार्केट में पैसे कैसे लगाएं शेयर मार्केट में पैसे लगाना एक उच्च वापसी और निवेश का माध्यम हो सकता है, लेकिन यह निवेश शोध, जागरूकता और विचारशीलता की जरूरत रखता है। यदि आप शेयर मार्केट में

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 भारत में बैंकिंग का विकास के चरण या अवधि

भारत में बैंकिंग प्रणाली के विकास को सात चरणों में विभाजित किया जा सकता है।

प्रथम चरण 1806 तक

18 वीं शताब्दी में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुंबई तथा कोलकाता में कुछ एजेंसी ग्रहों की स्थापना की। इन एजेंसी गृहों का वित्तपोषण ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा ही किया जाता था।इन एजेंसी गृहों का प्रमुख कार्य ईस्ट इंडिया कंपनी को सैनिक आवश्यकताओं के लिए रुपया ऋण देना, कागजी मुद्रा का निर्गमन करना तथा लाभों से नीक्षेप स्वीकार करना था। यूरोपीय बैंकिंग पद्धति पर आधारित भारत का पहला बैंक विदेशी पूंजी के सहयोग से एलेग्जेंडर एंड कंपनी द्वारा बैंक ऑफ हिंदुस्तान के नाम से 1770 में कोलकाता में स्थापित किया गया था। परंतु यह बैंक शीघ्र ही असफल हो गया ।

द्वितीय चरण 1806 से 1860 तक

1813 ईस्ट इंडिया कंपनी के वाणिज्य अधिकार समाप्त होने के साथ ही एजेंसी गृहों की पतन की प्रक्रिया शुरू हो गई। इसके बाद देश में निजी अंश धारियों द्वारा तीन प्रेसीडेंसी बैंकों की स्थापना की गई जो इस प्रकार हैं -1806 में बैंक ऑफ बंगाल , 1840 में बैंक ऑफ मुंबई तथा 1843 में बैंक ऑफ मद्रास । इन तीनों प्रेसीडेंसी बैंकों के स्वामी निजी शेयर होल्डरो के थे परंतु इनकी शेयर पूंजी में सरकार का भी कुछ अंश था अतः सरकार द्वारा इन तीनों बैंकों पर नियंत्रण रखा जाता था।

इन तीनों प्रेसिडेंसी बैंकों को सरकार के बैंकर के सभी अधिकार प्राप्त थे। परंतु 1862 के बाद भारत सरकार द्वारा इन बैंकों से नोट निर्गमित करने का अधिकार वापस ले लिया गया। 1991में इन तीनों प्रेसिडेंसी बैंकों को वापस में मिलाकर के इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना की गई। 1 जुलाई 1955 को इंपीरियल बैंक का राष्ट्रीयकरण किया गया तथा इसका नाम भारतीय स्टेट बैंक रखा गया।

तृतीय चरण (1860 से 1913 तक)

भारत सरकार ने 1860 मैं एक संयुक्त पूंजी कंपनी अधिनियम पारित किया गया। इसके अंतर्गत बैंकों के गठन संबंधी शब्दों को काफी उदार बना दिया गया तथा सीमित देयता के आधार पर देश में बैंकों के गठन को अनुमति दी गई इस अधिनियम के पारित होने के बाद देश में बैंकिंग विकास को एक नई दिशा मिली।

1865 मैं इलाहाबाद बैंक, 1881 में एलाइंस बैंक ऑफ शिमला, तथा अवध कमर्शियल बैंक, 1894 पंजाब नेशनल बैंक तथा 1901 मैं पीपुल्स बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना की गई। सीमित देयता के आधार पर 1881 म स्थापित अवध कमर्शियल बैंक भारतीयों द्वारा संचालित पहला बैंक था। पूर्णरूपेण भारतीयों का पहला बैंक पंजाब नेशनल बैंक था । जिसकी स्थापना 1894 मैं की गई थी। 1906 में बैंक ऑफ इंडिया, 1960 में बैंक ऑफ बड़ौदा, 1911 में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया तथा 1913 में बैंक ऑफ मैसूर की स्थापना की गई।

चतुर्थ चरण (1913 से 1939 तक)

इस अवधि में भारत में बैंकिंग क्षेत्र के सम्मुख प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ जाने के कारण संकट उत्पन्न हो गया भारतीय बैंकों से लोगों का विश्वास अचानक समाप्त हो गया। फलते जमा करताओ द्वारा अपना नीक्षेप निकालने की प्रक्रिया शुरू हो गई। भारतीय बाजार में मुद्रा की कमी हो गई थी। प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के भारत में बैंकिंग विकास की दर एक बार पुनः त्वरित हुई।

1921 में तीनों प्रेसिडेंसी बैंकों का आपस में विलय करके इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना की गई। 1930 की व्यापक मंदी का भी भारतीय बैंकिंग व्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ा 1930 में ही केंद्रीय बैंक की जांच समिति का गठन किया गया। समिति ने अपने प्रतिवेदन में सुझाव दिया था कि देश में एक सुद्दरीन,सुव्यवस्थित एवं सू संगठित बैंकिंग व्यवस्था की स्थापना के लिए एक केंद्रीय बैंक की स्थापना तथा व्यापक बैंकिंग अधिनियम बनाने पर बल दिया जाय। 1934 में भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम पारित किया गया। फलता 1 अप्रैल, 1935 से भारतीय रिजर्व बैंक ने कार्य करना शुरू कर दिया।

पंचम चरण (1939 से 1947 तक)

इस अवधि को बैंकिंग विस्तार की अवधि कहा जाता है क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के कारण जनित मुद्रास्फीति सीजन सामान्य की मौद्रिक आय में वृद्धि हुई। फालतू सभी बैंकों की मांग नीक्षेप की मात्रा में वृद्धि हुई। इस अवधि में नए बैंकों की स्थापना के साथ-साथ पुराने बैंकों द्वारा नई - नई शाखाएं खोली गई। यूनाइटेड कमर्शियल बैंक तथा हिंदुस्तान कमर्शियल बैंक आदि की स्थापना हुई।

षष्टम चरण (1947 से 1991 तक)

इस चरण में भारतीय रिजर्व बैंक का 1 जनवरी,1949 को राष्ट्रीयकरण किया गया तथा 1949 में भारतीय बैंकिंग अधिनियम पारित किया गया।इस अधिनियम के अंतर्गत अनुसूचित बैंकों का निरीक्षण करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक को अधिक व्यापक अधिकार प्रदान किया गया। देश में, विशेषता ग्रामीण क्षेत्रों में, बैंकिंग सुविधाओं कि विकास के लिए इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया का 1 जुलाई,1955 को राष्ट्रीयकरण किया गया तथा इसका नाम बदलकर भारतीय स्टेट बैंक कर दिया गया।

19 जुलाई, 1969 तथा 15 अप्रैल, 1980 को कर्म से 14 तथा 6 बड़े व्यावसायिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया।इसके पूर्व 1975 में क्षेत्रीय ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना करने की प्रक्रिया शुरू की गई। जिससे ग्रामीण क्षेत्रों को वित्तीय संसाधन अधिक मात्रा में उपलब्ध कराए जा सके।

सप्तम चरण (1991 से अब तक)

भारत में बैंकिंग इतिहास का सातवां चरण 1991 के बाद शुरू होता है। 1991 में नई आर्थिक नीति लागू होने के बाद 1993-94 में निजी क्षेत्र में पुनः बैंक खोलने की अनुमति दे दी गई।इसके साथ ही विदेशी बैंकों को भी भारत में अपना विस्तार करने तथा नई शाखाएं खोलने की अनुमति दे दी गई

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