आय या प्रतिफल मूल्यांकन विधि yield Valuation method
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आय या प्रतिफल मूल्यांकन विधि (yield Valuation method)
आय या प्रतिफल मूल्यांकन विधि में अंशो पर प्राप्त आय या प्रतिफल के आधार पर किया जाता है शुद्ध संपत्ति विधि की तुलना में यह विधि अधिक लोकप्रिय है इसमें अंशु का मूल्यांकन निम्न आधारों पर किया जाता है
A लाभांश दर के आधार पर
B अपेक्षित प्रत्याय दर के आधार पर
C उपार्जन क्षमता के आधार पर
अंशु के मूल्यांकन की क्यों और कब आवश्यकता है ?देखने के लिए क्लिक करें
(A) लाभांश दर के आधार पर मूल्यांकन(on the basis of dividend rate)
इसके अंतर्गत प्रत्येक अंशो का मूल्यांकन कंपनी द्वारा घोषित लाभांश की दर को सामान्य प्रत्याय की दर से भाग देकर प्राप्त भजन फल में अंशो के चुकता मूल्य का गुना कर किया जाता है इसी निम्नानुसार और अधिक स्पष्ट किया जा सकता है।
सूत्र-
अंशो का मूल्य = लाभांश की दर ÷प्रत्याय की सामान्य दर × अशो पर चुकता मूल्य
लाभांश की दर
लाभांश की दर से आशय उस दर से है जिस पर कंपनी द्वारा लाभांश की घोषणा की जाती है यदि प्रश्न में लाभांश किधर उल्लेखित ना हो तो इसकी गणना निम्नानुसार की जा सकती है
सूत्र-
लाभांश की दर= प्राप्त लाभांश ÷ अंश का चुकता मूल्य ×100
प्रत्याय की सामान्य दर
नियोजक द्वारा अपनी राशि किसी अन्य क्षेत्रों में भी नियोजित करने पर प्राप्त होने वाली आय की दर प्रत्याय की सामान्य दर कहलाती है
सामान्य प्रश्न में इसका उल्लेख प्रतिशत के रूप में होता है। यह प्रतिशत दर क्या स्थान पर प्राप्त लाभांश एवं अंशो का बाजार मूल्य दिया गया हो तो प्रतिशत के रूप में उसकी गणना निम्नानुसार होगी।
सूत्र-
प्रत्याय की सामान्य दर = प्राप्त लाभांश÷ अंश का बाजार मूल्य× 100
(B )अपेक्षित प्रत्याय दर के आधार पर (On the basis of expected rate of return)
इसके अंतर्गत अंशो का मूल्यांकन लाभांश पर क्या स्थान पर कंपनी की अपेक्षित प्रत्याय दर के आधार पर किया जाता है क्या नई कंपनियां बाजार में अपनी साख बनाए रखने के लिए कम लाभ होने पर भी अधिकतर से लाभांश का भुगतान करती हैं तथा ख्याति प्राप्त कंपनियां अधिक लाभ होने पर भी कुछ भाग रोककर कम दर से लाभांश का भुगतान करती हैं तो ऐसी स्थिति में लाभांश की दर के स्थान पर प्रत्याय की अपेक्षित दर के आधार पर अंशों का मूल्यांकन अधिक उपयुक्त होता है अपेक्षित प्रत्याय दर के आधार पर प्रति अंश मूल्य की गणना निम्नानुसार की जाती है|
सूत्र-
प्रति अंश मूल्य = अपेक्षित प्रत्याय दर ÷ सामान्य प्रत्याय दर × प्रति अंश चुकता राशि
उपरोक्त सूत्र में सामान्य प्रत्याय दर की गणना पूर्व की भांति ही होगी तथा अपेक्षित प्रत्याय की गणना निम्नानुसार होगी।
सूत्र-
अपेक्षिय प्रत्याय दर =लाभांश के लिए उपलब्ध लाभ ÷चुकता अंश पूंजी × 100
लाभांश के लिए उपलब्ध लाभ की गणना करते समय कंपनी के शुद्ध लाभ में निम्न मदे घटा दी जानी चाहिए
1 आयकर , 2 संचय में अंतरण, 3 ऋण पत्र शोधन कोष में अंतरण, 4 पूर्वाधिकार अंशो पर लाभांश, 5 संचयी पूर्वाधिकार अंशो पर लाभांश की बकाया राशि
यदि कंपनी के लाभ का बहुत बड़ा भाग संचय में अंतरित हो चुका हो तो परिस्थिति अनुसार उक्त संचय का 1/4 भाग, 1/3 भाग, अथवा 1/2 भाग लाभांश के लिए उपलब्ध लाभ में जोड़ा जा सकता है
(C) उपार्जन क्षमता के आधार पर(on the basis of earning capacity)
इसके अंतर्गत अंशो का मूल्यांकन वास्तविक उपार्जन क्षमता की आधार पर किया जाता है। अल्पकाल में अल्प मात्रा में अंशो में विनियोग पर अंशो का मूल्यांकन लाभांश दर अथवा अपेक्षित प्र त्याय दर के आधार पर करना उचित होता है किंतु यदि कोई व्यक्ति कंपनी पर नियंत्रण स्थापित करने के उद्देश्य से दीर्घकाल में कंपनी के अधिकांश अंश क्रय करने की इच्छा रखता हो, तो उनके अंशो का मूल्यांकन उत्पादन क्षमता के आधार पर किया जाना ही अधिक उपयुक्त होता है
उपार्जन क्षमता के आधार पर अंश का मूल्यांकन निम्नानुसार ज्ञात किया जा सकता है
सूत्र-
अंशो का मूल्य = वास्तविक लाभार्जन दर ÷ सामान्य प्रत्याय दर × यदि अंश चुकाया गया मूल्य
उक्त सूत्र में सामान्य प्रत्याय की दर की गणना पूर्व की भांति होगी तथा वास्तविक लाभ और जन धन की गणना निम्नानुसार होगी
सूत्र-
वास्तविक लाभार्जन दर =अर्जित लाभ ÷ नियोजित पूजा ×100
तलपट क्या है तलपट कैसे बनते है?
कंपनी का आशय , कंपनी की परिभाषाएं
कंपनी का वर्गीकरण (classification of company)
अर्जित लाभ क्या होता है या अर्जित लाभ से आशय
"अर्जित लाभ का आशय ब्याज घटाने की पूर्व एवं कर घटाने के पश्चात प्राप्त लाभ की राशि से है" दूसरे शब्दों में, "अर्जित लाभ से आशय उस लाभ से है जिस में आयकर की राशि घटा दी गई हो किंतु संचय, ऋण पत्रों पर ब्याज तथा पूर्वाधिकार अंशो पर लाभांश की राशि ना घटाई गई हो"
अतः यदि प्रश्न मी लाभ संचय में अंतरण, ऋण पत्रों एवं दीर्घकालीन ऋणों पर ब्याज तथा पूर्वाधिकार अंशो पर लाभांश की राशि घटाने के बाद का हो तो उक्त राशियां लाभ में जोड़ दी जानी चाहिए तथा यदि लाभ में कर ना घटाया गया हो तो आयकर की राशि घटा दी जानी चाहिए
="font-size: x-large;">यदि अर्जित लाभ में कोई गैर व्यापारिक लाभ सम्मिलित हो तो उसी भी घटा दिया जाना चाहिए तथा कई वर्षों का पृथक पृथक अर्जित लाभ होने पर औसत अर्जित लाभ की राशि ली जानी चाहिए।
नियोजित पूजी का आशय, या नियोजित पूंजी क्या है
सामान्यत: नियोजित पूजी से आशय ख्याति सहित सभी संपत्तियों के बाजार मूल्य या वसूली मूल्य से है। कुछ विद्वानों का यह मत है कि नियोजित पूंजी का असर वास्तविक संपत्तियों (प्रारंभिक व्यय, अंश एवं ऋणपत्रों पर बट्टा, लाभ-हानि विवरण का डेबिट से, आदि को छोड़कर) की बाजार मूल्य या वसूली मूल्य में बाह्य( दायित्व पूर्वाधिकार एवं समता अंश पूंजी, संचय, लाभ-हानि विवरण - पत्र का क्रेडिट शेष आदि को छोड़कर) की राशि घटाकर प्राप्त राशि से है।इस प्रकार संपत्तियों की वसूली या बाजार मूल्य के योग को सकल नियोजित पूंजी (grass capital employed ) तथा बाह्य दायित्व की राशि घटाकर प्राप्त पूजी शुद्ध नियोजित पूजी(net capital employed) कहां जाता है इस विधि को पूंजीकरण विधि भी कहा जाता है
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